पुस्तक: गुलामगिरी – जोतिराव फुले
लेखक: महात्मा जोतिराव फुले
भाषा: हिंदी
श्रेणी: सामाजिक सुधार, इतिहास, साहित्य
गुलामगिरी महात्मा जोतिराव फुले द्वारा रचित एक प्रभावशाली पुस्तक है, जो भारत में सामाजिक असमानता, जातिवाद और उत्पीड़न के मुद्दों पर प्रकाश डालती है। यह पुस्तक दलितों और महिलाओं की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण करती है और समानता व न्याय की आवश्यकता पर जोर देती है। मुख्य विशेषताएं: सामाजिक अन्याय और शोषण के खिलाफ एक प्रेरणादायक आवाज। भारतीय समाज में जाति आधारित भेदभाव का ऐतिहासिक विश्लेषण। समानता और स्वतंत्रता के प्रति फुले की दृष्टि को समझने का एक अनमोल अवसर। यह पुस्तक न केवल इतिहास और सामाजिक अध्ययन के विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है, बल्कि समाज सुधार के प्रति रुचि रखने वाले सभी पाठकों के लिए भी अत्यंत प्रेरणादायक है।
ज्योतिराव फुले की जीवनी
पूरा नाम: महात्मा ज्योतिराव फुले
जन्म: 11 अप्रैल 1827, पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु: 28 नवम्बर 1890, पुणे, महाराष्ट्र
प्रसिद्धि: समाज सुधारक, लेखक, शिक्षक, और स्वतंत्रता सेनानी
महात्मा ज्योतिराव फुले भारतीय समाज के महान समाज सुधारक और दलितों, महिलाओं, और शोषित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले पहले नेता थे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद और स्त्री-शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। उनके योगदान ने भारतीय समाज को जागरूक किया और बदलाव की दिशा में अहम कदम उठाए। फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य समाज में फैली असमानता और भेदभाव को समाप्त करना था। उन्होंने शिक्षा को सबके लिए सुलभ बनाने का प्रयास किया, विशेषकर महिलाओं और नीच जातियों के लिए। उनकी किताब ‘गुलामगिरी’ में उन्होंने भारतीय समाज में गुलामी और शोषण के मुद्दों पर गहरी टिप्पणी की। फुले का कार्य आज भी समाज सुधारक, इतिहासकार, और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने सामाजिक सुधार के क्षेत्र में जो पहल की, वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आधुनिक समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुख्य योगदान: जातिवाद और सामाजिक भेदभाव के खिलाफ संघर्ष। महिलाओं और दलितों के लिए शिक्षा का अधिकार। गुलामगिरी जैसे प्रभावशाली ग्रंथों का लेखन। सत्यशोधक समाज की स्थापना। समाज में समानता और न्याय की वकालत।
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