साकेत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुज की वह अमर कृति है जिसे गुप्त जी अपने साहित्यिक जीवन की अंतिम रचना के रूप में पूरी करना चाहते थे । उनकी इस इच्छा के अनुरूप साकेत वास्तविक अर्थों में उनकी अमर रचना बन गई । यद्यपि ‘साकेत’ में राम, लक्ष्मण और सीता के वन गमन का मार्मिक चित्रण है, कि इस कृति में समस्त मानवीय संवेदनाओं की अनुभूति पाठक को होती है । इस कृति में उर्मिला के विरह का जो चित्रण गुप्त जी ने किया है वह अत्यधिक मार्मिक और गहरी मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से ओत-प्रोत है । सीता तो राम के साथ वन गई, किन्तु उर्मिला लक्ष्मण के साथ वन न जा सकीं । इस कारण उनके मन में विरह की जो पीड़ा निरंतर प्रवाहित होती है उसका जैसा करुण चित्रण राष्ट्रकवि ने किया है, वैसा चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है । इस करुण चित्रण को पढ़कर पाठक के मन में करुणा की ऐसी तरंग उठना अनिवार्य है, कि आखें बरबस नम हो जायें और राष्ट्रकवि की साहित्यिक क्षमता को नमन कर उठें ।
- Paperback : 328 pages
- Reading age : 10 years and up
- Item Weight : 350 g
- Dimensions : 21 x 14 x 2 cm






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