विक्रमाङ्कदेवचरितम प्रथमः सर्ग आधुनिक विद्वानों ने पहले हर्षचरित और उसके बाद विक्रमांकदेवचरित को खोज निकाला। उसके बाद तो अनेक ऐतिहासिक ग्रंथ प्रकाश में आये, किन्तु अभी तक उपलब्ध पद्यात्मक चरित काव्यों में विक्रमांकदेवचरित का अपना अलग वैशिष्ट्य है। ‘विक्रमांकदेवचरित’ को प्रकाश में लाने का प्रशंसनीय कार्य किया जर्मन विद्वान् डॉ. जार्ज ब्युलर महोदय ने। अपने मित्र डॉ. एच. जेकोबी के साथ घूमते हुए वे सन् १८७४ में राजपुताना आये। यहाँ जैसलमेर स्थित “जैन बृहज्ज्ञान कोश भण्डार” में इस महाकाव्य की प्राचीन ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण प्रति उन्हें मिली।
Reviews
There are no reviews yet.